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चमन बहार फिल्म रिव्यू – नेटफ्लिक्स पर जीतेंद्र कुमार की फिल्म | Chaman bahaar movie evaluate Netflix Jitendra kumar, Ritika badiani

[ad_1] सीधी सी कहानी है एक लाइन में अगर चमन बहार की कहानी कही जाए तो इसे आप देसी कबीर सिंह कह सकते हैं। एक लड़का, एक लड़की को देखता है और सोचता

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सीधी सी कहानी है

सीधी सी कहानी है

एक लाइन में अगर चमन बहार की कहानी कही जाए तो इसे आप देसी कबीर सिंह कह सकते हैं। एक लड़का, एक लड़की को देखता है और सोचता है ये मेरी है। दिक्कत ये है कि कई और लड़के इस लड़की को देखते हैं और सोचते हैं ये मेरी है। और फिर पूरी फिल्म इस लड़की को एक दूसरी की भाभी बनाने में निकल जाती है।

ये है प्लॉट

ये है प्लॉट

बिल्लू यानि कि जीतेंद्र कुमार की ज़िंदगी बहुत खराब जा रही थी। वो एक पनवाड़ी है। यानि कि पान की दुकान चलाता है। दुकान का नाम है चमन बहार। लेकिन इस दुकान की किस्मत तब बदलती है जब दुकान के सामने वाले घर में रहने आती है रिंकू। और रिंकू को देखने के लिए आती है पान की दुकान पर भीड़।

क्यों खास है रिंकू

क्यों खास है रिंकू

इस फिल्म में रिंकू ज़्यादा बोलती नहीं है। बोलती है उसकी टांगे। जी हां, रिंकू के आसपास मजनुओं की भीड़ है क्योंकि वो इलाके की इकलौती लड़की है शायद जो शॉर्ट्स पहनती है। और इस बात को फिल्म में हाईलाइट भी पूरे तरीके से किया गया है।

स्कूल में पढ़ने वाली रिंकू

स्कूल में पढ़ने वाली रिंकू

अब धीरे धीरे ये फिल्म आपको इरिटेट करना शुरू करती है। जैसे कि स्कूल जाने वाली लड़की रिंकू के पीछे लड़कों की पूरी जमात का चलना। अफसर जी के लड़के का भी इन लड़कों में शामिल होना। और इन सारी चीज़ों को फिल्म में हास्यास्पद तरीके से दिखाने की कोशिश भी गई है।

रिंकू से क्या करना है

रिंकू से क्या करना है

फिल्म और असहज तब होती है जब जीप से रिंकू का पीछा करने वाले लड़के कहते हैं कि जीप उसकी स्कूटी के पास होनी चाहिए जिससे उसे पता रहे कि उसका पीछा किया जा रहा है। इसे भी कॉमेडी की तरह ही इस्तेमाल किया गया है।

बहुत कोशिश करते हैं जीतेंद्र

बहुत कोशिश करते हैं जीतेंद्र

चमन बहार, 2018 में जीतेंद्र कुमार का फिल्म डेब्यू होने वाला था। वो इस फिल्म में हीरो दिखने की पूरी कोशिश करते हैं और फिल्म को अपने कंधों पर संभालने की भी पूरी कोशिश करते हैं। लेकिन फिल्म का लचर लेखन और बेदम कहानी उनकी कोई मदद नहीं करता है।

किसी का कोई काम नहीं है

किसी का कोई काम नहीं है

फिल्म में कास्ट की भरमार है लेकिन किसी का कोई काम नहीं दिखाई देता है। क्योंकि सबका काम है कुछ उधड़े हुए डायलॉग्स के साथ कॉमेडी करने की कोशिश करना और रिंकू का पीछा करना।

खेलने का सामान

खेलने का सामान

फिल्म में रिंकू क्यों है, किसलिए है इसका कोई ज़िक्र नहीं है। उसे कितनी परेशानी हो रही है, वो क्या महसूस कर रही है, इसे भी दिखाना डायरेक्टर ने ज़रूरी नहीं समझा है। कुल मिलाकर पूरी फिल्म में रिंकू एक सुंदर गुड़िया है जिससे खेला जा सकता है, मन बहलाया जा सकता है।

पुरूष समाज की सोच

पुरूष समाज की सोच

कुल मिलाकर पूरी फिल्म पुरूष समाज पर चोट करने के उद्देश्य से शायद बनाई गई थी या नहीं पता नहीं, लेकिन ये फिल्म पुरूष समाज पर चोट करती हुई कहीं से नहीं दिखती है। वहीं पूरी फिल्म कॉमेडी, एक्शन से लेकर ड्रामा और इमोशन तक हर जगह बिखरी हुई है।

मत करिए समय बर्बाद

मत करिए समय बर्बाद

हमारी राय में आप इस फिल्म के लिए अपना समय बर्बाद करें ऐसा हम बिल्कुल नहीं चाहेंगे। इससे अच्छा आप जीतेंद्र कुमार की कोई और सीरीज़ किसी और चैनल पर देख लीजिए।

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