द ताशकंद फाइल्स विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में निर्मित यह फिल्म भारत

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द ताशकंद फाइल्स विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में निर्मित यह फिल्म भारत

द ताशकंद फाइल्स विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में निर्मित यह फिल्म भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत की कहानी पर

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द ताशकंद फाइल्स विवेक अग्निहोत्री के निर्देशन में निर्मित यह फिल्म भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमय मौत की कहानी पर आधारित है। देश के पूर्व प्रधानमंत्री पर बनी फिल्म की कहानी फिल्म में एक अलग ही कहानी बयां करती नजर आती है। शास्त्री जी का निधन 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में शांति समझौते पर साइन करने के कुछ घंटों बाद हो गया था। फिल्म में ऐसे कई सवाल उठाए गए है जो उनकी मृत्यु के रहस्य से पर्दा उठाने की कोशिश करती हुई नजर आती है। उनके शरीर पर कट के निशान क्यों थे, उनकी बॉड़ी का पोस्टमार्टम क्यों नहीं किया गया? जैसे तमाम सवाल फिल्म में उठाए गए हैं।

द ताशकंद फाइल्स फिल्म की कहानी 

फिल्म की शुरुआत एक पत्रकार रागिनी फुले के साथ होती है, रागिनी फुले (श्वेता बसु प्रसाद) को उसके बॉस ने 15 दिन का अल्टीमेटम दिया हुआ है। हर पत्रकार की तरह रागिनी को एक सनसनीखेज न्यूज का इंतजार है। कहानी की यही कड़ी फिल्म को शुरुआत देते हुए आगे बढ़ती है और इसी बीच रागिनी को ताशकंद फाइल्स हाथ लग जाती है। जिसके बाद रागिनी लाल बहादुर शास्त्री की रहस्यमयी मौत से जुड़ी खबर को अखबार में प्रकाशित करवा देती है।
अखबार में इस न्यूज के छपने के बाद सरकार को लाल बहादुर शास्त्री की मौत का केस एक बार फिर वापस खोलना पड़ता है। फिल्म में आगे किस तरह बढ़ती है? कैसे रागिनी सच्चाई को उजागर करने की कोशिश करती है?  और पूर्व प्रधानमंत्री की मृत्यु कैसे हुई यह जान पाती है या नहीं, इन तमाम सवालों के लिए आपको फिल्म देखनी चाहिए।

इंटरवल तक दम तोड़ती फिल्म

फिल्म में शास्त्री की मौत पर फिल्म में जो तथ्य प्रस्तुत किए गए हैं क्लाइमैक्स तक वे एकतरफा नजर आते हैं। फिल्म में श्वेता बसु प्रसाद अपने कैरेक्टर में घुसने के चलते कई बार ओवर एक्टिंग करती नजर आती हैं। नसीरुद्दीन शाह, पल्लवी जोशी, मंदिरा बेदी और पंकज त्रिपाठी समेत कई कलाकारों का किरदार फिल्म में खोया हुआ नजर आता है।  हालांकि, मिथुन चक्रवर्ती की एक्टिंग बाकी सभी से ठीक रही।

दमदार कहानी पर बेअसर किरदार

फिल्म की सिनेमेटोग्राफी जितनी अच्छी है उतना फिल्म का बैकग्रांउड म्यूजिक न्याय करते हुए नहीं दिखाई देता है। फिल्म रुकी हुई सी लगती है और बीच-बीच में बोझिल पन का एहसास भी कराती है। दमदार सब्जेक्ट होने के बावजूद विवेक अग्निहेत्री फिल्म में कमाल नहीं दिखा पाए। अब देखना होगा क्या इतना कुछ होने के बाद भी फिल्म आगे चलकर दर्शकों को अपनी ओर खींच पाएंगी या नहीं।

शाम्भवी मिश्रा